Add To collaction

भटकती आत्मा भाग - 22




भटकती आत्मा – भाग 22

कहिए, पियून साहब ! क्या सेवा की  जाए आपकी"?
  व्यंग्यात्मक स्वर में एक कमरे से निकलता हुआ मिस्टर जॉनसन ने जोर से कहा |
    "कलेक्टर साहब ने यह सामान भेजा है,और आज नहीं आ सकेंगे, उन्होंने कहलवाया है"|
"आप तो अब मैगनोलिया से मिलना पसंद करेंगे" -   जॉनसन की आवाज  उभरी।
   "आप कहना क्या चाहते हैं"? -
  क्रोधित होता हुआ मनकू माँझी ने पूछा। परंतु उसकी इस आवाज के साथ ही कई  गुंडे बाहर निकल आए। जॉनसन के इशारे पर उन्होंने मनकू माँझी को धर दबोचा। बरामदा अखाड़ा बन चुका था। अकेले मनकू उन लोगों से जूझ रहा था, परंतु इतने गुंडों के सामने उसका कुछ भी वश नहीं चला। मिस्टर जॉनसन की बंदूक का कुंदा उसके सिर पर लगा,और आंखों के सामने सितारे नाचते से दिखाई दिए । कुछ क्षणों में ही मूर्छित होकर गिर पड़ा मनकू।
मनकू के शरीर को जीप में दो गुंडों ने मिलकर रख दिया। मिस्टर जॉनसन ने बंगले में ताला लगाया और चाबी लेकर बंगले के पिछवाड़े की तरफ निकल गया। पिछवाड़े में माली पौधों को कैंची से काटकर सजा रहा था। उसके हाथ में चाबी थमा कर तथा उसको कुछ समझा कर जीप के समीप उपस्थित हुआ जॉनसन। सब लोग जीप में बैठ चुके थे। घर्घराहट की आवाज के साथ जीप में गति आ गईऔर जीप में बैठे राही चल पड़े एक अज्ञात दिशा में। 
      
        -    ×     -     ×     -    ×   -

  मैगनोलिया अपने घोड़े को दौड़ाती हुई चली आ रही थी। उसने दूर से आते हुए जीप को देखा। फिर उसकी दृष्टि बेहोश पड़े हुए मनकू माँझी से टकरायी। वह जोर से मिस्टर जॉनसन से संबोधित हुई, परंतु जीप आगे निकल गया । लहरा कर घोड़े से गिर पड़ी मैगनोलिया तथा लुढकती हुई सड़क के बगल की खाई में जा कर विलुप्त हो गई।

           -   ×   -   ×   -   ×   -

नेतरहाट से लगभग बीस किलोमीटर दूर घनघोर जंगलों के बीच जाकर जीप रुक गयी l मिस्टर जॉनसन ने कहा -
   "यही उपयुक्त स्थान है,यहीं पर इसको उतार फेंको। मेरा यह बंदूक इसके आखिरी सांस को भी समाप्त कर देने को मचल रहा है"।
मनकू माँझी के बेहोश शरीर को गुण्डों ने जीप से निकाला। उसी समय एक जहरीला सांप सामने के चट्टान पर दिखा। जॉनसन के इशारे पर उसी चट्टान की तरफ मनकू माँझी के शरीर को उछाल दिया गुंडों ने। जॉनसन ने देखा -  सांप क्रोध से फुफकारने लगा था फिर मनकू माँझी को काट लिया था। एक गुंडे ने कहा  -    "इसका काम तमाम हो गया सरकार,अब बंदूक को कष्ट नहीं होगा"।
  मिस्टर जॉनसन प्रसन्न हो उठा था। उसने कहा   -  "चलो अब चलें, इसका शव यहीं सड़ गल जाएगा। हमें अब चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है"।
    जीप पुनः  विपरीत दिशा में चल पड़ी थी। मिस्टर जॉनसन का मन मयूर हर्षातिरेक से झूम रहा था।

           -   ×   -   ×   -   ×   -

   कलेक्टर साहब ने घड़ी देखी कांटे बारह बजा रहे थे। उनका मन आशंका से भर उठा। अभी तक मैगनोलिया क्यों नहीं आई। शॉपिंग से तो उसको आठ बजे तक आ जाना चाहिए था,फिर क्यों नहीं आई अब तक ? कहीं उसने योजना को कार्यान्वित होते हुए तो न देख लिया था। अगर ऐसा हुआ है तो आत्महत्या ना कर ले उनकी बेटी। घबड़ा गये कलेक्टर साहब। इंतजार करते हुए जब बारह बज गये तब उनसे न रहा गया। बंगला से बाहर लॉन तक आए। उन्होंने देखा कि मैगनोलिया का घोड़ा चुपचाप खड़ा है। फिर कलेक्टर साहब को देखकर अश्व हिनहिनाने लगा। कलेक्टर साहब उसके हिनहिनाने का अर्थ नहीं समझ पाए। फिर कुछ देर तक लगतार कलेक्टर साहब को यूं ही खड़ा देखकर घोड़ा ने उनके नाइट गाउन को अपने मुंह से पकड़ लिया और एक ओर खींचने लगा।  कलेक्टर साहब को बात समझ में आ गई। वे घोड़ा के साथ चल पड़े। साथ ही अपने नौकरों को भी बुला लिया साथ चलने के लिए।
घोड़ा दुर्घटना स्थल पर जाकर रुक गया। दूर-दूर तक जंगल ही जंगल दिखता था, मैगनोलिया का कहीं पता नहीं था। कलेक्टर साहब घोड़े के व्यवहार पर बौखला गये,फिर ध्यान से घोड़े को निहारने लगे। वह नीचे घाटी की तरफ अपना मुंह झुका कर फिर कलेक्टर साहब को देखने लगता था।
 कलेक्टर साहब ने अपने टॉर्च की रोशनी घाटी में फेंका। इधर-उधर प्रकाश का वृत्त घूमता रहा। अंत में कलेक्टर साहब को सफलता मिली। उनके टॉर्च की रोशनी एक मानव शरीर से टकराकर स्थिर हो गई थी। ध्यान से देखने पर यह शरीर मैगनोलिया का ही प्रतीत हुआ। कलेक्टर साहब दु:ख से आहत हो गए। उन्होंने नौकर को घाटी में उतरने को कहा, परन्तु उस में उतरना सरल नहीं था। एक नौकर भागा हुआ लैंप तथा कुल्हाड़ी लाने के लिए बंगला की तरफ दौड़ पड़ा। दो नौकर उतरने का उपाय सोच रहे थे। कलेक्टर साहब का  सिर चकराने लगा। वे एक चट्टान पर जा बैठे। मिस्टर जॉनसन की असावधानी पर कभी वे खीझ उठतेऔर कभी अपनी बेटी की दशा पर मूक क्रंदन करने लगते।



          -   ×   -   ×   -   ×   -

मिस्टर जॉनसन दो बजे रात में बंगले पर पहुंचा। एक जीप पहले से  बंगला के लॉन में खड़ा था। रात्रि की निस्तब्धता में बंगला मौन तपस्वी सा खड़ा था। प्रकाश का नामोनिशान न था। धड़कते दिल से जॉनसन ने बंगला के प्रत्येक कमरे में दृष्टि डाली, परंतु किसी की उपस्थिति प्रतीत नहीं होती थी।
  "अरे कलुआ" - जोर से पुकारा मिस्टर जॉनसन ने -  परंतु कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। कई बार पुकारने पर एक वृद्धा सेविका की नींद में डूबी आवाज उभरी  -  
    "छोटे साहब, कोई नहीं है यहां। सभी नौकर चाकर और बड़े साहब मैगनोलिया बेबी को खोजने के लिए निकले हैं"।
   "ओह, कहीं मैगनोलिया ने आत्महत्या तो नहीं कर लिया"? धड़कते दिल से सोचा जॉनसन ने फिर व्यग्र सा होता हुआ एक तरफ चल पड़ा।


           -   ×   -   ×   -   ×   -


मिस्टर जॉनसन ने एक चट्टान पर बैठे हुए कलेक्टर साहब को देखा। एक नौकर लंबा सा एक पेड़ काटने में जुटा हुआ था। निकट जाने का साहस जॉनसन में नहीं था, फिर भी दबे पैर कलेक्टर साहब के पास पहुँचा। उनका ध्यान भंग हुआ और मिस्टर जॉनसन से दृष्टि टकराई। डरते हुए सारी बात उसने बताया। योजना क्रम में एक गलती यही हुई थी कि मैगनोलिया ने मनकू माँझी को देख लिया था,और शायद घाटी में छलांग लगा दिया था।
  पेड़ काटा जा चुका था। नौकरों ने उस पेड़ को घाटी में खड़े एक विशाल पेड़ की शाखा पर टिका दिया। एक छोड़ सड़क से छू रहा था। कई नौकर इस पेड़ के सहारे घाटी में खड़े उस विशाल पेड़ पर पहुँच गये,और वहां से पुनः नीचे खाई में उतरने लगे। दो घंटे के अथक परिश्रम के बाद मैगनोलिया के शरीर को ऊपर सड़क पर लाया गया।
  कलेक्टर साहब ने देखा, मैगनोलिया की नाड़ी बहुत ही धीमी गति से चल रही थी। सांस तो डूबा हुआ सा था। अपनी जीप को तुरंत बंगले से मंगवाया और मिस्टर जॉनसन के साथ बड़े मिशन हॉस्पिटल की ओर भागने लगे।
   जीप जब अस्पताल के कंपाउंड में रुकी तब सुबह के छः बज चुके थे। डॉक्टरों की दृष्टि कलेक्टर साहब से टकराई फिर चिकित्सालय के सेवकों और डॉक्टरों की भागदौड़ प्रारंभ हो गई। शल्य कक्ष में मैगनोलिया को पहुंचाया जा चुका था । अन्दर डॉक्टर रोगी का परीक्षण कर रहे थे,और बाहर कलेक्टर साहब तथा मिस्टर जॉनसन व्यग्रता से डॉक्टर के द्वारा दी जाने वाली सूचना की प्रतीक्षा में बैठे थे ।
               
           -   ×   -   ×   -   ×   -
      

            बीन की आवाज समस्त वन प्रांत के शांत वातावरण में मिठास घोल रही थी। जंगल का हरा भरा आंचल मधुर संगीत की ताल पर लहरा रहा था। ऐसा लगता था जैसे वन देवता कोई उत्सव मना रहे हों,और उसी उपलक्ष में बीन बजा रहे हों। परंतु यह तो मात्र कल्पना है,वास्तविकता तो कुछ और ही थी। सपेरे बीन बजा रहे थे और मधुर संगीत की आवाज सुनने के लालच में जहरीले भयङ्कर सांप अपने अपने बिलों से बाहर निकल रहे थे। सपेरों के कुशल हाथ उसे पकड़ते जा रहे थे और टोकरी में भरते जा रहे थे। सपेरों की यह टोली जँगल के विभिन्न हिस्सों में हर एक महीने के बाद पहुंचता था तथा सांपों को पकड़ कर अपनी बस्ती में ले जाता था। उसके विष को निकालता तथा उसे विदेशियों के हाथों बेच देता था। इससे उनकी अच्छी आय होती थी। इस टोली में स्त्री-पुरुष, युवक-युवती, वृद्ध-वृद्धा सभी होते थे। आय का बंटवारा उनमें समान रूप से किया जाता था। आज का मौसम कुछ गर्म था। सूर्य की तपती किरणों का समूह वन प्रांत को बाणो के समान बिंध रहा था। वसुधा का आंचल तप रहा था। टोली के सभी सदस्य अपने-अपने कार्य में व्यस्त थे। अचानक बीन की आवाज थम गई। एक  युवती ने एक ओर इशारा किया था, वह भय से कांप रही थी। उसके इशारे को देखकर एक युवक ने बीन को मुंह से निकाला,तथा उस दिशा में आगे बढ़ गया। उसकी दृष्टि एक मानव शरीर को छू गई। यह शरीर किसी पुरुष का था जो, अपने देश का ही कोई युवक था। परंतु बेचारे का शरीर एकदम काला पड़ चुका था। शरीर पर कुछ खरोंच के निशान भी उभरे हुए थे जो सुख चुके थे। पता नहीं कब से यह पड़ा था। एक ने कहा -  "किसी ने मार कर इसे फेंक दिया है"।
   तब तक कई लोग उस के इर्द-गिर्द इकट्ठे हो चुके थे। उनके सरदार ने निरीक्षण कर कहा -  
   "लगता है इस को सांप ने काटा है,इसीलिए शरीर काला पड़ चुका है। मगर यह मरा नहीं है,गहरी बेहोशी में है"।
एक वृद्ध मुस्कुराने लगा। उसने कहा - "सरदार तुमको तो केवल सांप का जादू ही हमेशा दिखाई देता है,अरे किसी ने मार कर फेंक दिया है। देखते नहीं इसके शरीर पर खरोंच है"?
सरदार ने कहा -   "लेकिन खून तो कहीं भी दिखाई नहीं पड़ रहा है। साँस भी हल्की-हल्की चल रही है,इसलिए मेरे विचार से किसी ने इसको पीटा है और यहां फेंक दिया। फिर किसी सांप ने काट खाया है। इसकी चिकित्सा शीघ्र होने से यह बच सकता है"।
वृद्ध सुनकर गंभीर हो गया। सरदार के इशारे पर एक युवक ने उस बेहोश पुरुष को कंधों से उठा लिया और बस्ती की ओर चल पड़ा। साँप भी काफी पकड़े जा चुके थे,इसलिए सब लोग बस्ती की तरफ चल पड़े।

           -   ×   -   ×   -   ×   -

   क्रमशः



   17
0 Comments